बवासीर जिसे पाइल्स भी कहा जाता है, एक मेडिकल कंडिशन है जिसके विषय में आमतौर पर व्यक्ति बात करने में असहज होता है। इस परेशानी के बारे में खुलकर बात करना तो दूर व्यक्ति इस परेशानी सामान्य रुप से किसी के साथ शेयर भी नहीं कर पाते है। ये परेशानी गूदा क्षेत्र में खुजली, जलन, ब्लीडिंग, दर्द देती है। इस बीमारियों के कारण शरीर पर भी काफी असर देखने को मिलता है। वैसे इस बीमारी का कई दवाइयों से उपचार किया जा सकता है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को कुछ मामलों में सर्जरी करवाने की नौबत भी आती है, जो काफी असुविधाजनक होता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए आयुर्वेद में क्षार सूत्र ट्रीटमेंट को काफी प्रभावी माना गया है। ये ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति के शरीर में सर्जरी किए बिना ही रोग से मुक्ति मिल जाती है। मरीजों को ना ही किसी तरह का जख्म होता है और ना ही कोई खून निकलता है।
क्षार सूत्र चिकित्सा के बारे में महत्वपूर्ण बातें जानें
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जानें क्या है क्षार सूत्र चिकित्सा
आयुर्वेद के मुताबिक क्षार सूत्र चिकित्सा पैरासर्जिकल आयुर्वेदिक थेरेपी है, जो आम भाषा में ब्लडलेस थेरेपी के नाम से प्रख्यात है।
इस थेरेपी में फिस्टुला या पाइल्स के मामलों में सर्जरी क्षार से की जाती है। आयुर्वेद में बताई गई ये प्राचीन, प्राकृतिक और विश्वसनीय थेरेपी है। इस थेरेपी को करवाने के लिए मरीज को छुट्टी लेने की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रक्रिया की खासियत है कि ये शरीर में जख्म के बिना और खून निकाले बिना ही मरीज की परेशानी को हल कर देता है। इस आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली की खासियत है कि ये सर्जरी किए बिना ही रोग का खात्मा कर देता है। इस प्रणाली में किसी भी अंग को काटने या हटाने की आवश्यकता नहीं होती है।
बता दें कि क्षार उन पदार्थों को बोला जाता है जो जल में आसानी से घुल जाते हैं। क्षार सूत्र चिकित्सा में उन औषधीय पौधों का इस्तेमाल होता है जिनके क्षार बनाए जाते हैं। इसमें यव, अर्क, लटजीरा आदि शामिल है। इनके पांच अंगों यानी पत्ती, जड़, तना, फल और फूलों की मदद से इलाज किया जाता है। औषधीय पौधों के इन अंगों को धोकर सुखाया जाता है। इसके बाद इनके टुकड़े कर एक बर्तन में रखकर जलाने के बाद इसकी राख तैयार की जाती है।
इस तैयार राख को लगभग आठ गुना अधिक पानी में मिलाया जाता है। इस पानी को एक या दो नहीं बल्कि 21 बार महीन कपड़े के जरिए छाना जाता है। इस पानी को भाप बनने की स्थिति तक उबाला जाता है। पानी के भाप बनने के उड़ने के बाद बर्तन में लाल या भूरे रंग का पाउडर युक्त पदार्थ बच जाता है, जिसे क्षार कहा जाता है। इस क्षार को हवा के संपर्क से बचाना आवश्यक होता है, इसलिए इसे कांच की शीशी में रखना सबसे उत्तम माना जाता है।
बता दें कि क्षार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। पहला पानीय (जिसे खाने लायक) क्षार कहा जाता है। अन्य है प्रतिसारणीय क्षार (शरीर पर लगाने वाले) का उपयोग घाव या किसी अंग पर किया जाता है। आयुर्वेद के क्षार सूत्र चिकित्सा में प्रतिसारणीय क्षार का उपयोग किया जाता है।
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जानिए क्षार सूत्र चिकित्सा की प्रक्रिया
क्षार सूत्र चिकित्सा प्रक्रिया की शुरुआत औषधि पौधों स्नुही दूध, यव, अर्क, लटजीरा में से क्षार, स्नुही दूध और हल्दी मिलाकर एक औषधीय मिश्रण तैयार कर किया जाता है।
क्षार की 21 परतें एक पक्के धागे पर चढ़ाई जाती है। इससे नए धागे का निर्माण होता है जिसे क्षार सूत्र के नाम से जाना जाता है। क्षार सूत्र प्रक्रिया में इसी 21 परतों युक्त धागे का इस्तेमाल किया जाता है।
इस धागे से गुदा में बनने वाले मस्सों पर गांठ बांधी जाती है। मस्सों पर ये गांठ लगभग सप्ताह भर तक बंधी रहती है। एक सप्ताह में न सिर्फ मस्से निकल जाते हैं बल्कि इनसे मवाद भी निकलता है।
इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद मरीज को खास दवाएं दी जाती है। मरीज को औषधीय तेल दिया जाता है जो इस प्रक्रिया में हुए शारीरिक नुकसान को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। क्षार सूत्र की खासियत है कि इससे मरीज का इलाज बिना किसी सर्जरी, चीर फाड़ और बिना खून निकाले किया जाता है। इस प्रक्रिया के जरिए मरीज को किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। ये प्राकृतिक आयुर्वेदिक थेरेपी है, जिससे ना सिर्फ पाइल्स की समस्या खत्म होती है बल्कि इसके दोबारा होने की आशंका भी बेहद कम होती है।
इस प्रक्रिया के जरिए मरीज को पूर्ण राहत सप्ताह भर में होती है। इसका 100% प्रभाव देखने के लिए दो से तीन सप्ताह का समय लगता है।
जानें क्षार सूत्र चिकित्सा से जुड़े लाभ
- क्षार सूत्र चिकित्सा से उपचार पाने के बाद कई स्वास्थ्य समस्याओं का निदान होता है।
- क्षार सूत्र चिकित्सा गूदा मार्ग से दानों को खत्म करने में कारगर है।
- पायलोनिडल साइनस के सुरक्षित उपचार के लिए क्षार सूत्र चिकित्सा का इस्तेमाल किया जाता है।
- ये थेरेपी इतनी प्रभावशाली है कि गुदा का कैंसर होने पर भी इस थेरेपी को लेने की सलाह दी जाती है। ये थेरेपी मरीजों को आराम देने में सक्षम है।
- आयुर्वेद के मुताबिक इस थेरेपी के जरिए गुदा में होने वाली जलन की समस्या से निदान पाया जा सकता है।
क्षार सूत्र चिकित्सा के हैं ये नुकसान
- क्षार सूत्र चिकित्सा को अगर ठीक से ना किया जाए तो इसके नुकसान उठाने पड़ सकते है।
- क्षार सूत्र चिकित्सा अपनाने के बाद निर्धारित दवाइयां और तेल न लेने से गुदा नली में इंफेक्शन हो सकता है।
- इस थेरेपी के बाद कुछ मामलों में स्कार्स होने की संभावना रहती है।
- वर्षों पुरानी गुदा कैंसर की समस्या से निजात पाना संक्रमण के खतरे को पैदा कर सकता है।
- गुदा में पहले लगी किसी प्रकार की चोट के कारण थेरेपी के बाद उस हिस्से में जलन या कटाव का अनुभव हो सकता है।
बरतनी चाहिए ये सावधानियां
- आमतौर पर क्षार सूत्र चिकित्सा पद्धति अपनाने के दौरान कई सावधानियों को बरतना आवश्यक होता है। इन सावधानियों को न बरतने की स्थिति में शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकत है।
- थेरेपी लेने वाले मरीजों को थेरेपी लेने से पहले और बाद में अपने आहार में अहम बदलाव करना चाहिए। थेरेपी से पहले छह घंटों में सिर्फ तरल आहार लें। तीन से चार घंटे बाद ही हल्का ठोस आहार लें।
- मरीज को क्षार सूत्र थेरेपी लेने के बाद अगले दिन से सप्ताह में कम से कम तीन बार गर्म पानी से स्नान करना चाहिए। ये कार्य कम से कम तीन सप्ताह तक अवश्य करना चाहिए।
- क्षार उपचार के बाद फाइबर युक्त भोजन करना चाहिए।
- उपचार के बाद लंबी दूरी की यात्रा और ड्राइविंग करने से बचना चाहिए।
- इलाज के बाद लंबे समय तक खड़े रहने या लंबे समय तक बैठने का काम ना करें।