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जानें नस्य थेरेपी (Nasya Treatment) क्या है ? इसकी विधि और फायदे

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Written by Ritika

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स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए आयुर्वेद वर्षों पुरानी पद्धति है जिसमें हर्बल दवाओं, जड़ी बुटियों, कई थेरेपी के जरिए इलाज किया जाता है। आयुर्वेद पद्धति में सिर्फ इलाज ही नहीं किया जाता बल्कि इलाज के मुताबिक आहार और जीवनशैली में आवश्यक बदलाव भी किए जाते है।
अगर आयुर्वेदिक चिकित्सा अपनाने के दौरान उपरोक्त बदलाव नहीं किए जाते तो ये इलाज को पूर्ण रूप से असर नहीं दिखाने देता। ऐसा करने से इलाज की पूरी प्रक्रिया सार्थक नहीं होती। आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्सा की बहुत अहमियत होती है, जो व्यक्ति को सेहतमंद बनाने में अहम भूमिका निभाती है। आयुर्वेद में पंचकर्म थेरेपी में शामिल नस्य चिकित्सा है जो बहुत कारगर होती है। इसकी मदद से कई स्वास्थ्य जटिलताओं पर काबू पाया जा सकता है। ये एक नहीं बल्कि कई रोगों के इलाज में सहायक है।

नस्य थेरेपी के बारे में जानें सब

  1. जानें क्या है नस्य चिकित्सा
  2. जानें नस्य चिकित्सा दिए जानें का कारण
  3. जानें इसकी पूर्ण प्रक्रिया

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    जानें क्या है नस्य चिकित्सा

    जानें क्या है नस्य चिकित्सा

    नस्य चिकित्सा आयुर्वेद के उस पहलू पर काम करता है जो कान, नाक, गले से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को निदान देता है। नस्य चिकित्सा पद्धति में मरीज के नाक के छिद्रों यानी नॉल्ट्रिल्स के जरिए नासिका में आयुर्वेदिक दवा डाली जाती है। आमतौर पर ये दवा आयुर्वेदिक तेल, पाउडर या रस हो सकता है। इस चिकित्सा पद्धति के जरिए वर्षों पुराने साइनोसाइटिस, सिरदर्द, माइग्रेन, कान, नाक या गले में संक्रमण की बीमारी को खत्म किया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया से नाक का मार्ग शांत होता है और बलगम भी साफ होता है।
    बता दें कि पंचकर्म चिकित्सा पद्धति में शामिल नस्य चिकित्सा मुख्य रूप से माइग्रेन, सिरदर्द, साइनोसाइटिस, सांस लेने में तकलीफ समेत कई जटिल समस्याओं का निदान करने में सक्षम है। इस नस्य चिकित्सा को वर्षों प्रभावी रूप में कई बीमारियों का इलाज करने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। ये पद्धति आवाज में सुधार करती है।

    जानें नस्य चिकित्सा दिए जानें का कारण

    जानें नस्य चिकित्सा दिए जानें का कारण

    नस्य चिकिस्ता में इलाज नाक के जरिए किया जाता है। ये शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में सक्षम है। इस चिकित्सा पद्धति में नाक गुहाओं यानी नोजल कैविटी को साफ किया जाता है। नोजल कैविटी के जरिए ही सिर और मस्तिष्क तक पहुंचा जाता है। इस हिस्से की स्वच्छता का विशेष ख्याल रखना बेहद आवश्यक है। नस्य चिकित्सा इस कैविटी के जरिए सफाई को अधिक सुगम बनाती है। नस्य चिकित्सा की मदद से तनाव को कम किया जा सकता है। ये मस्तिष्क को एक्टिव करती है।

    जानें इसकी पूर्ण प्रक्रिया

    जानें इसकी पूर्ण प्रक्रिया

    इस चिकित्सा पद्धति में मरीज को आधे घंटे का सेशन करना होता है, जिसमें नाक की सफाई के जरिए उपचार किया जाता है।
    इस चिकित्सा पद्धति में मरीज के कंधे के ऊपर की दिशा में मालिश की जाती है। मरीज को आराम मिलने के बाद उसकी नाक में दवा की खुराक डाली जाती है। इस दवा को मरीज को श्वास लेने को कहा जाता है। इसके साथ नाक, गर्दन, कंधे, हथेलियों और पैरों के आसपास भी मालिश की जाती है। मुख्य रुप से नस्य चिकित्सा में तीन चरण होते है।

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    पूर्वकर्म

    पहला चरण पूर्वकर्म कहलाता है, जिसमें व्यक्ति की जांच आयुर्वेदिक चिकित्सक से कराई जाती है। जांच में पूर्ण मूल्यांकन कर पता लगाया जाता है कि व्यक्ति नस्य चिकित्सा के लिए उपयुक्त है या नहीं है। आयुर्वेद एक्सपर्ट जांच के आधार पर नस्य चिकित्सा के जरिए बीमारी का निदान करते है। इस प्रक्रिया को अष्टविधा परीक्षा और दशाविधा परीक्षा कहा जाता है।
    मूल्यांकन होने के बाद चिकित्सक हर्बल फार्मूलेशन तय करता है। इस हर्बल फार्मूलेशन के जरिए ही व्यक्ति को औषधीय तेल, घी या पाउडर की डोज दी जाती है। व्यक्ति की क्षमता और रोग की गंभीरता पर इस चिकित्सा को किया जाता है। नस्य चिकित्सा के लिए अणु तैलम सबसे उपयुक्त और पसंदीदा हर्बल तेल माना जाता है।
    इस पद्धति की शुरूआत से पूर्व मरीज को सभी नियमित गतिविधियों को पूरा करने को कहा जाता है। आमतौर पर इस पद्धति की शुरुआत से एक घंटा पहले मरीज को हल्का आहार दिया जाता है। मरीज को मेज पर लिखा कर आरामदायक स्थिति में आने की हिदायत दी जाती है। इसके बाद गर्दन, चेरहे, माथे पर तेल की मालिश होती है। हल्के साथ से तीन-पांच मिनट तक ये मालिश की जाती है।

    प्रधानकर्म

    पूर्व कर्म के बाद प्रधानकर्म का नंबर आता है। इसमें स्तर पर सिर को हल्का पीछे कर झुकाया जाता है। पैर थोड़े ऊपर उठाए जाते है। इसके बाद आंखों को सूती कपड़े से ढका जाता है।
    एक्सपर्ट नाक में हर्बल फॉर्मूलेशन को डालते है। हर्बल फॉर्मूलेशन डालने की प्रक्रिया में उचित उपकरणों की सहायता ली जाती है। हर्बल फार्मूलेशन डालने के बाद मरीज के कंधों और तलवों की मालिश की जाती है। मरीज को एक तरफ मुड़ने को कहा जाता है जिससे जड़ी बूटी का मिश्रण गले तक खींचा जा सके। इसे मरीज को थूकना होता है।

    पास्चट कर्म

    नास्य कर्मा का ये अंतिम चरण है। इसमें व्यक्ति को लिटाए जाने के बाद सिर, गाल और गर्दन के बास हर्बल धुआं किया जाता है। इस प्रक्रिया में मरीज को गरारे करवाए जाते हैं ताकि गले में नास्क प्रक्रिया के दौरान जमा हुआ तेल या दवा बाहर निकाली जा सके। इस चिकित्सा पद्धति के पूरा होने के बाद मरीज को हल्का भोजन और हल्का गुनगुना पानी पानी होता है।

    बरतनी चहिए ये सावधानियां

    इस चिकित्सा पद्धति के दौरान कुछ सावधानियां बरतना जरुरी है ताकि इसका पूर्ण लाभ मिल सके। नस्य चिकिस्ता करवाने के बाद मरीज को शारीरिक या मानसिक परेशानी से बचने के लिए इन सावधानियों को बरतना चाहिए।
    चिकित्सा कराने के बाद मरीज को धूम्रपान, धूल, शराब, यात्रा, दिन में सोने और ठंडे पाने के सेवन से परहेज करना चाहिए।
    आयुर्वेद के मुताबिक नस्य चिकित्सा करवाने वाले मरीजों को गुनगुने तेल से मसाज करनी चाहिए। नस्य चिकिस्ता करवाते समय मरीज को बोलने, हंसने या छींकना नहीं चाहिए।
    नस्य चिकित्सा प्रक्रिया के दौरान हर्बल मिश्रण को निगलने से बचना चाहिए। नाक के जरिए डाले गए हर्बल तेल को श्लेष्म और रुग्ण के जरिए बाहर निकालना चाहिए। ये दवा या तेल शरीर के अंदर बची नहीं रहनी चाहिए।
    इस चिकित्सा को सिर्फ योग्य आयुर्वेदिक डॉक्टर से करवाना चाहिए। अगर चिकित्सा करवाने में कोताही बरती जाए तो इसके दुषपरिणाम हो सकते हैं या चिकित्सा का पूर्ण लाभ मरीज को नहीं मिलता है।

    नस्य चिकित्सा से होते हैं ये फायदे

    नस्य चिकित्सा मुख्य रूप से तनाव में कमी, माइग्रेन, स्पोंडिलोसिस, आंखों की देखभाल, लकवा जैसी समस्याओं से मुक्ति दिलाने में कारगर है।
    इस पद्धति के इस्तेमाल से कई तरह के दर्द से निजात मिलती है। नस्य पद्धति से सिरदर्द, माइग्रेन, सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के रोगियों को राहत देता है। इस पद्धति में उपयोग होने वाला औषधीय तेल या पाउडर मस्तिष्क के कई महत्वपूर्ण हिस्सों को उत्तेजित करता है जो दर्द की तीव्रता को कम करते है।

    स्ट्रेस को कम करे

    स्ट्रेस को कम करने के लिए नस्य पद्धति लाभकारी है। नाक के जरिए औषधीय दवाओं या तेलों को डाला जाता है। ये मस्तिष्क के अहम केंद्रों को उत्तेजित करात है। ये भावनाओं को नियंत्रित करने में मददगार है।

    डिटॉक्सिफाई करे

    शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में इस पद्धति की अहम भूमिका होती है। पंचकर्मों में से एक पद्धति को आयुर्वेदिक डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी के तौर पर देखा जाता है।

    त्वचा और बालों की करे देखभाल

    नस्य चिकिस्ता को नियमित तौर पर करने से ये त्वचा की रंगत को सुधारता है। इससे बालों की सेहत और सुंदरता के लिए ये रामबाण माना जाता है। बालों को सफेद होने से रोकने में भी ये लाभकारी है।

    लकवा से दिलाए राहत

    आयुर्वेद में नाक को मस्तिष्क तक पहुंचने का मार्ग बताया गया है। नासिका द्वारा डाली गई किसी दवा को सीधे मस्तिष्क तक पहुंचाया जाता है। खासतौर से लकवा की बीमारी में ये स्थिति काफी राहत देती है।

    आंखों की सेहत सुधारे

    आंखों की सेहत के लिए नस्य पद्धति काफी लाभकारी होती है। इस पद्धति में इस्तेमाल की गई दवाएं मस्तिष्ट के विशिष्ट क्षेत्रों पर काम करती है।

    जानें नस्य चिकित्सा के नुकसान

    जानें नस्य चिकित्सा के नुकसान

    बड़े स्तर पर नस्य चिकित्सा के किसी तरह के दुष्प्रभाव नहीं है। आयुर्वेद एक्सपर्ट की मानें तो कुछ मामलों में जब मरीज के गले से तेल नीचे चला जाता है तब गले या चेहरे पर जलन की शिकायत हो सकती है। ये जलन कुछ समय बाद खत्म हो जाती है। वैसे ये नस्य चिकित्सा के सामान्य साइड इफैक्ट है जो कुछ समय में गायब हो जाते है।

    जानें नस्य चिकित्सा को कराने की लागत

    आयुर्वेदिक पद्धति से की जाने वाली नस्य चिकित्सा काफी लाभकारी होती है। इस चिकित्सा की खासियत है कि ये व्यक्ति की जेब पर भी अतिरिक्त भार नहीं डालती है। ये अन्य थेरेपी की तरह काफी किफायती होती है। आमतौर पर नस्य चिकिस्ता के एक सत्र के लिए लगभग 500 रुपये खर्च किए जाते है। सत्र की कीमत सेशन में उपयोग किए गए औषधीय तेलों की गुणवत्ता और जड़ी बूटियों के उपयोग पर भी निर्भर करती है।

    जानें सारांश

    नाक, गले और कान की विभिन्न समस्याओं से पीड़ित मरीजों को नस्य चिकित्सा अपनानी चाहिए। इन रोगियों के लिए नस्य चिकित्सा सबसे अधिक उपयोगी साबित होती है। नस्य चिकित्सा आयुर्वेदिक पंचकर्म का हिस्सा है। इससे सिर के क्षेत्र से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते है। शरीर को दोबारा जीवंत करने में ये काफी मददगार होता है। नस्य चिकिस्ता के जरिए तनाव और कई समस्याओं को दूर किया जाता है। ये चिकिस्ता करवाने से पहले रोगी को आयुर्वेदिक चिकित्सक से अपनी जांच करवानी चाहिए, ताकि इससे किसी दुष्परिणाम से बचा जा सके।

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