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कटी बस्ती (Kati Basti) थेरेपी क्या है? प्रक्रिया फायदे और नुकसान

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Written by Ritika

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कमर दर्द एक ऐसी समस्या है जिससे अपने जीवन में हर व्यक्ति कभी ना कभी परेशान जरूर हुआ होगा। कमर दर्द थोड़े समय में होकर ठीक हो जाए तो राहत होती है मगर लंबे समय तक चलने वाला कमर दर्द जीना दूभर कर देता है। आमतौर पर गलत पॉश्चर में बैठने या सोने के कारण ये समस्या उत्पन्न होती है। वैसे इसके कई अन्य कारण भी हो सकते है। इस परेशानी से निपटने के लिए आयुर्वेदिक उपचार कटी बस्ति (Kati Basti) काफी उपयोगी है। इस थेरेपी का इस्तेमाल मुख्य रूप से पीठ दर्द की परेशानी को दूर करने के लिए दिया जाता है। बता दें कि कटी बस्ति (Kati Basti) आयुर्वेद में दिए जाने वाले पंचकर्म चिकित्सा पद्धति का अहम हिस्सा है। इस पद्धति के जरिए शरीर को फिर से ऊर्जावान बनाया जाता है।
कटी बस्ति (Kati Basti) पद्धति के जरिए आमतौर पर कमर दर्द ठीक किया जाता है। बता दें कि कमरदर्द आमतौर पर कई गलत आदतों जैसे घंटों कंप्यूटर के आगे बैठकर काम करने, उठने-बैठने के गलत तरीके, कमजोर हड्डियों, शारीरिक श्रम न करने के कारण और अत्यधिक तनाव के कारण मांसपेशियों में आए खिंचाव के कारण होता है। इन कारणों से कमर की नसों की ताकत कम होती है। इस स्थिति के लंबे समय तक रहने पर दवाओं से आराम मिलना भी बंद हो जाता है। लंबे अंतराल में ये परेशानी स्लिप डिस्क की परेशानी में तब्दील हो जाती है। इसे ठीक करने के उपाय के तौर पर डॉक्टर ऑपरेशन कराने की सलाह देते है। हालांकि इस परेशानी से निजात दिलाने में काफी कारगर आयुर्वेदिक उपाय कटी बस्ति (Kati Basti) को माना गया है।

कटी बस्ति के बारे में जानें सब

  1. जानें कटी बस्ति (Kati Basti) के बारे में
  2. कटी बस्ति (Kati Basti) के ये हैं प्रकार
  3. ये है कटी बस्ति (Kati Basti) की प्रक्रिया
  4. कटी बस्ति (Kati Basti) के लाभ
  5. कटी बस्ति (Kati Basti) से हो सकते हैं ये नुकसान
  6. कटी बस्ति (Kati Basti) में बरतें ये सावधानी

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    जानें कटी बस्ति (Kati Basti) के बारे में

    जानें कटी बस्ति (Kati Basti) के बारे में

    सरल भाषा में समझें तो कटी का अर्थ है “पीठ का निचला हिस्सा” और बस्ति का अर्थ है प्रतिधारण। कटी बस्ति (Kati Basti) आयुर्वेदिक पद्धति के जरिए पीठ के हिस्से में सूजन, जकड़न और दर्द का इलाज किया जाता है। कटी बस्ति (Kati Basti) पद्धति से इलाज कराने वाले मरीज को पीठ दर्द से राहत मिलती है।
    कटी बस्ति (Kati Basti) पद्धति की मदद से शरीर को शुद्ध किया जाता है। ये वात दोष को शांत करने में अहम भूमिका निभाता है। ये पद्धति आयुर्वेद की पंचकर्म चिकित्सा का अहम हिस्सा है, जिससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। इस आयुर्वेदिक पद्धति में गर्म तेल के जरिए इलाज किया जाता है, जिसे लंबोसैकरल थेरेपी कहा जाता है। पीठ में सूजन, जकड़न और दर्द से जूझ रहे मरीजों के लिए ये कटी बस्ति (Kati Basti) पद्धति काफी उपयोगी सिद्ध होती है।

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    कटी बस्ति (Kati Basti) के ये हैं प्रकार

    कटी बस्ति (Kati Basti) के ये हैं प्रकार

    आयुर्वेद में कटी बस्ति (Kati Basti) को वात दोष को शांत करने वाली थेरेपी कहा जाता है। बता दें कि बस्ति रिंग के आकार की होती है, जो मुख्य रूप से अनाज (काले चने के आटे) की बनाई जाती है। वहीं गर्म तेल से की गई मालिश से मांसपेशियों में बल्ड सर्कुलेशन भी सुधरता है। जानकारी के लिए बता दें कि वस्ति एक नहीं बल्कि अनेक प्रकार की होती है।

    • कटी बस्ति (पीठ के निचले हिस्से पर)
    • ग्रीवा बस्ति (गर्दन के हिस्से पर)
    • जानू बस्ति (घुटने पर)
    • मेरुदंडा बस्ति (रीढ़ के हिस्से पर)
    • नाभि बस्ति (नाभि के आसपास)
    • उरो बस्ति (छाती के हिस्से पर)

    ये है कटी बस्ति (Kati Basti) की प्रक्रिया

    ये है कटी बस्ति (Kati Basti) की प्रक्रिया

    कटी बस्ति (Kati Basti) पद्धति को करने का आयुर्वेद में पूर्ण रूप से एक तरीका बताया गया है। आयुर्वेद के अनुसार कटी बस्ति (Kati Basti) प्रक्रिया को शुरू करने के लिए सबसे पहले काले चने का आटा गूंथा जाता है। इसके बाद मरीज को पेट के बल लेटाया जाता है। चने के आटे की एक रिंग को पीठ के चारों ओर या फिर प्रभावित हिस्से पर लगाया जाता है। इस रिंग में गर्म औषधीय तेल डाला जाता है। ये तेल धीरे धीरे त्वचा के टिश्यू में अंदर तक पहुंचता है। धीरे धीरे इस प्रक्रिया से मरीज की दर्द की समस्या दूर होती है। कटी बस्ति (Kati Basti) थेरेपी का एक सेशन लगभग 30-40 मिनट का होता है।

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    कटी बस्ति (Kati Basti) के लाभ

    कटी बस्ति (Kati Basti) के लाभ

    • ये थेरेपी दर्द में बहुत लाभदायक होती है। इस थेरेपी के जरिए कई औषधीय गुणों से भरपूर तेल मांसपेशियों के गहरे टिश्यू में पहुंचकर मांसपेशियों को पोषण देता है। इस थेरेपी से मांसपेशियां मजबूत होती है।
    • ये थेरेपी जोड़ों को लचीला बनाकर दर्द दूर करने में सहायक है। जोड़ों की समस्या से जूझ रहे लोगों को इस थेरेपी की मदद लेनी चाहिए।
    • इस थेरेपी का लाभ उन लोगों को अधिक होता है जो स्पॉन्डिलाइटिस, इंटरवर्टेब्रल डिस्क प्रोलैप्स, लूम्बेगो या लेबर पीठ दर्द जैसी परेशानियों से जूझते है।
    • वात दोष को शांत करने के लिए भी कटी बस्ति थेरेपी (Kati Basti) का इस्तेमाल किया जाता है। इस थेरेपी को लेने वाले लोगों की रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है। ये पीठ दर्द से राहत देने के लिए उपयोगी है।

    कटी बस्ति (Kati Basti) से हो सकते हैं ये नुकसान

    कटी बस्ति (Kati Basti) से हो सकते हैं ये नुकसान

    कटी बस्ति (Kati Basti) के उपचार के बाद सबसे अधिक सकारात्मक असर रीढ़ की हड्डी के हिस्से को होता है। आमतौर पर इस थेरेपी के नुकसान नहीं होते हैं। मगर मरीज को किन्हीं चुनिंदा मामलों में बुखार, सूजन, अधिक पसीना आना, नसों में दर्द जैसी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। हालांकि हर मरीज में ऐसी समस्याएं होने की संभावना कम होती है। इस थेरेपी को हर मरीज को सिर्फ आयुर्वेद एक्सपर्ट की सलाह और निगरानी में कराना चाहिए।

    कटी बस्ति (Kati Basti) में बरतें ये सावधानी

    कटी बस्ति (Kati Basti) में बरतें ये सावधानी

    • कटी बस्ति उपचार वैसे तो काफी प्रभावशाली है। इस आयुर्वेदिक थेरेपी को सावधानी के साथ अपनाना चाहिए। इसे हमेशा सिर्फ अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में करवाना चाहिए।
    • इस थेरेपी को करने के दौरान तेल अधिक गर्म नहीं होना चाहिए। अधिक गर्म तेल के उपयोग से त्वचा को नुकसान हो सकता है। कुछ मामलों में त्वचा जल भी सकती है।
    • तेल के रिसाव को रोकने के लिए जरूरी है कि बस्ति यानी आटे की रिंग को अच्छी तरह से चिपकाया जाए। मरीज को भी ध्यान रखना चाहिए कि थेरेपी करवाते समय अधिक हिले डुलें नहीं। ऐसा करने से रिंग टूट सकती है और तेल बह सकता है।

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